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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2653
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र

प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

अथवा
'शिक्षा' से क्या तात्पर्य है? एवं इसकी प्रकृति को समझाए।
अथवा
शिक्षा के अर्थ, प्रत्यय एवं प्रकृति को समझाइए।
अर्थवा
शिक्षा की अवधारणा बताइए।
अथवा
शिक्षा से तात्पर्य को समझाइए।
अथवा
शिक्षा की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शिक्षा की प्रकृति को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'शिक्षा विज्ञान है या कला' अपने उत्तर की पुष्टि हेतु उदाहरण दीजिए।

उत्तर -

अति प्राचीनकाल से ही शिक्षा मानव के सर्वागीण विकास का स्रोत रही है। वर्तमान मानव, शिक्षा के कारण ही आज सभ्यता के उच्च शिखर पर पहुँच सका है। मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाने का श्रेय भी शिक्षा को प्राप्त है।

शिक्षा की अवधारणा
(Concept of Education)

प्रायः शिक्षा का अर्थ पाठशाला या विद्यालय में विधिवत अध्ययन करने से लिया जाता है। विद्वानों का विचार है कि विद्यालयों में ही बालक को शिक्षा दी जाती है। वहीं पर रहकर वे जीवन के भविष्य का निर्माण करते हैं। वहीं पर व्यक्ति के सामान्य व्यवहार की रचना होती है और उसी के अनुरूप उसके चरित्र एवं व्यक्तित्व का विकास होता है। शिक्षा के विषय में डॉ. वी. डी. भाटिया का कथन है कि - "उद्देश्य के ज्ञान के अभाव में शिक्षक उस नाविक के समान है जिसे अपने लक्ष्य या मंजिल का पता नहीं है। विद्यार्थी उस पतवारविहीन नौका के समान है जो समुद्र में लहरों के थपेड़े खाती हुई तट की ओर बहती जा रही है।"

शिक्षा के अभाव में व्यक्ति पशु के समान रहता है। वह अपने जीवन आदर्शों, आशाओं, आकांक्षाओं, विश्वास, परम्परा तथा सांस्कृतिक विरासत को विकसित नहीं कर सकता। एडीसन ने लिखा है कि "शिक्षा द्वारा मानव के अन्तर में निहित उन सभी व्यक्तियों तथा गुणों का दिग्दर्शन होता है। इन गुणों को शिक्षा के माध्यम से ही विकसित किया जाता है।"

शिक्षा की परिभाषायें
(Definitions of Education)

प्रिंसटन रिव्यू के अनुसार, - "शिक्षा सीखना नहीं है, वरन् मस्तिष्क की शक्तियों का अभ्यास और विकास है और यह ज्ञान के केन्द्र तथा जीवन के संघर्षो के माध्यम से प्राप्त होती है।"

शिक्षा के माध्यम विषय को प्राचीन काल से ही विज्ञान स्पष्ट करते रहे हैं। यहाँ पर कुछ परिभाषाएं दी गई हैं जिनसे शिक्षा की विषय स्थिति का पता चलता है।

1. गाँधी जी के मतानुसार - "शिक्षा से मेरा अभिप्राय का सम्बन्ध शरीर मस्तिष्क एवं आत्मा से है।" बालक एवं मनुष्य के सर्वागीण विकास

2. स्पेन्सर के अनुसार - "शिक्षा में आदतों स्मरण आदर्श, स्वरूप शारीरिक एवं मानसिक कौशल, बौद्धिकता एवं रुचि नैतिक विचार एवं ज्ञान ही नहीं विधियां भी सम्मिलित हैं।"

3. अरिस्टोटल के मतानुसार - "शिक्षा स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण करती है।" 4. प्लेटो के अनुसार "शिक्षा से मेरा तात्पर्य उस प्रशिक्षण से है जो अच्छी आदतों के द्वारा बालकों में नैतिकता का विकास करे।"

5. कान्ट के अनुसार - "शिक्षा व्यक्ति का वह सम्पूर्ण विकास है जिसके लिए वह पात्र है।" 6. पेस्टालॉजी के अनुसार "मानव शक्तियों का प्राकृतिक निरन्तर एवं प्रगतिशील विकास ही शिक्षा है।"

7. जॉन डी. वी. के अनुसार - "शिक्षा व्यक्ति की उन योग्यताओं के विकास का नाम है जो उसे उसके वातावरण पर नियन्त्रण रखना सिखाती है और उसकी सम्भावनाओं को पूर्ण करती है।"

स्पष्टीकरण - ये सभी परिभाषाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि शिक्षा एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो बालक को समाज में रहने वाले विकास की क्षमता की वृद्धि करने में महत्वपूर्ण योग देती है। शिशु में अनेक महत्वपूर्ण गुण होते हैं। वे गुण शिक्षण के माध्यम से ही विकसित होते हैं। कुल मिलाकर व्यक्ति को एक सम्पूर्ण व्यक्ति बनाने में योगदान देते हैं।

शिक्षा की प्रकृति - शिक्षा का स्वरूप या प्रकृति क्या है इसके सम्बन्ध में विद्वानों ने अपनी-अपनी राय स्पष्ट की। शिक्षा विज्ञान है या कला? शिक्षा से सम्बन्धित इन समस्याओं पर पीछे से असमंजस्य की - स्थिति बनी रही है। करना हमारा ध्येय हैं। शिक्षा की प्रकृति विज्ञान है या कला? इसके निर्धारण सेपूर्व हमे यह देखना आवश्यक है कि विज्ञान और कला क्या है?

विज्ञान क्या है? - विज्ञान ज्ञान को एक विशिष्ट शाखा है इसकी कसौटी अनिवृत्ति या उपागम है न कि विषय-वस्तु। कार्लपियर्सन के अनुसार "सभी विज्ञानों की एकता उनमें विधिशास्त्र में निहित होती हैं नाकि विषय-वस्तु में। " विज्ञान की प्रमुख विशेषता - तथ्यात्मकता, सार्वभौमिकता उसके नियमों की प्रमाणिकता, कार्य-कारण सम्बन्धों की खोज तथा नियमों पर आधारित भविष्यवाणी करना इत्यादि। विज्ञान तथ्यों एवं सत्यों की एक व्यवस्था है।

कला क्या है? - - कला ज्ञान की अपेक्षा कौशल में निहित होती है इसी कौशल की महारत की लोग ज्ञान का नाम भी देते है। कला की कसौटी कलाकार का कौशल होता है। यह व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाती है। कला का लक्ष्य करना है न कि जानना। कला में ज्ञान के साथ-साथ कौशल तथा अभ्यास शामिल होता है। अभ्यास तथा पुनरावृत्ति के बिना कला को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

शिक्षा की प्रकृति - उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि शिक्षा को न तो पूर्णत: विज्ञान की श्रेणी में रख सकते है और न ही कला की श्रेणी में गौरपूर्वक देखें तो यह विज्ञान एवं कला दोनों ही है। इसके लिए उपयुक्त शब्दावली या नामकरण 'शिक्षा की कला' तथा 'शिक्षा-विज्ञान' प्रयुक्त किया जा सकता है। शिक्षा विज्ञान न तो पूर्णत: सैद्धान्तिक है और न ही व्यावहारिक इसमें सैद्धान्तिक तथा व्यवहारिक दोनों ही पक्ष दृष्टिगत होते है। वस्तुत: यह व्यावहारिक पहलू अधिक रहता है। अतः विज्ञान की श्रेणी में इसका स्थान सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक (Applied) विज्ञान दोनों के रूप में है।

वैज्ञानिक प्रवृत्ति ने शिक्षा की प्रकृति में बदलाव प्रस्तुत किया है। इस बदलाव के परिणामस्वरूप शिक्षा को एक सामाजिक विज्ञान के रूप में देखा जाता है। सामाजिक विज्ञान के रूप में यह नवीन व्याख्या प्रस्तुत करती है और शैक्षिक प्रक्रिया की सम्पूर्ण संरचना में बदलाव ला सकती है। इस दृष्टि से शिक्षा गत्यात्मक तथा प्रगतिशील हो रही है। साथ ही साथ विज्ञान नियामक या प्रमाणिक भी है। इस प्रवृत्ति के फलस्वरूप शिक्षा के विषय क्षेत्र में शैक्षिक मूल्यांकन शैक्षिक अनुसंधान, शैक्षिक तकनीकी आदि को स्थान मिला है।

शिक्षा विज्ञान में जीव शास्त्र जैसे मनोविज्ञान तथा समाजशास्त्र जैसे सामाजिक तथा मानविकी विज्ञानों को स्थान प्राप्त है। साथ ही नीतिशास्त्र तथा तर्कशास्त्र जैसे विज्ञानों की विषयवस्तु को स्थान प्राप्त है। इसमें शिक्षण प्रक्रिया का अभ्यास भी सम्मिलित है। अभ्यास के माध्यम से शिक्षण रूपी कौशल को प्राप्त किया जा सकता है। अतः हम कह सकते है कि शिक्षा, विज्ञान एवं कला दोनों ही है।

शिक्षा की विशेषताएँ
(Characteristics of Education)

1. सचेतन प्रक्रिया - किन्हीं अर्थों में शिक्षा को एक सचेतन प्रक्रिया भी कहा जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो जान-बूझकर तथा सप्रयास चलाई जाती है। शिक्षक शिक्षार्थी को नियमित रूप से शिक्षा प्रदान करता है।

2. यह विकास की एक प्रक्रिया है - शिक्षा के परिणामस्वरूप व्यक्ति का विकास होता है। विकास उस प्रक्रिया को कहा जाता है जिसके द्वारा आन्तरिक शक्तियों का प्रगटीकरण या प्रस्फुटन होता है। शिक्षा में बाहर से कुछ नहीं थोपा जाता बल्कि अन्दर से विकास होता है।

3. शिक्षा एक प्रक्रिया है - शिक्षा को एक प्रक्रिया (Process) के रूप में स्वीकार किया जाता है। शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन भर चलती रहती है। शिक्षा की इस प्रक्रिया से ही जीवन का विकास होता है।

4. शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है - शिक्षा की प्रक्रिया में दो धुरियाँ हैं अर्थात् शिक्षक तथा विद्यार्थी। यह भी कहा जा सकता है कि प्रक्रिया में शिक्षक तथा शिक्षार्थी दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। दोनों का एक-दूसरे के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है।

5. शिक्षा की प्रक्रिया आजीवन चलती रहती है - शिक्षा के व्यापक एवं वास्तविक अर्थ को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि यह प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है। शिक्षा की प्रक्रिया जन्म से ही प्रारम्भ हो जाती है तथा मृत्यु तक चलती है। शिक्षा को केवल पाठशाला तथा संस्थागत शिक्षा के रूप में सीमित नहीं किया जा सकता।

5. शिक्षा के दो पक्ष होते हैं - शिक्षा की प्रक्रिया के दो पक्ष होते हैं अर्थात् मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक। बालक की मूल प्रवृत्तियों, संवेगों तथा प्राकृतिक शक्तियों के विकास का अध्ययन शिक्षा के मनोवैज्ञानिक पक्ष के अन्तर्गत किया जाता है तथा सामाजिक आदर्शों, मूल्यों एवं मान्यताओं का अध्ययन शिक्षा के सामाजिक पक्ष के अन्तर्गत किया जाता है। इस विषय में प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री डीवी महोदय का कहना है, "सभी प्रकार की शिक्षा व्यक्ति द्वारा सामाजिक जीवन की सक्रियतापूर्वक भाग लेने से आगे बढ़ती है।'

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
  4. प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
  5. प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए - (i) तत्व-मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
  7. प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
  8. प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है?
  9. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
  10. प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
  12. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
  14. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
  15. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
  17. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है?
  19. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  21. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये |
  22. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  23. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  24. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  25. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  26. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  27. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  28. प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  29. प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक की भूमिका को समझाइए।
  31. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है?
  32. प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
  33. प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
  34. प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
  36. प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
  37. प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।" स्पष्ट कीजिए।
  39. प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों?
  40. प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
  41. प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है?
  43. प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है?
  44. प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
  45. प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  46. प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
  47. प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
  48. प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
  49. प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  52. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  53. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  54. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्त्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  55. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  56. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  57. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  58. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  60. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं? लिखिए।
  62. प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
  63. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है?
  64. प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन का क्या अभिप्राय है? बताइए।
  66. प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  67. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर की शिक्षा दर्शन की शिक्षण विधियाँ क्या हैं? बताइए। शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है? सोदाहरण समझाइए।
  71. प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं?
  72. प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- आधुनिक शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम के निर्धारण में जॉन डीवी के योगदान का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
  76. प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
  77. प्रश्न- बहुलवाद, बहुलवादी शिक्षा से आपका क्या आशय है? इसकी विधियाँ बताइये।
  78. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया को बताइए।
  80. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में जाति, वर्ग एवं लिंग की भूमिका बताइए।
  82. प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं? विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एवं इसकी आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- विद्यालय संगठन की परिभाषाए देते हुए विद्यालय संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
  84. प्रश्न- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध बताइए।
  85. प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं?
  86. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? इनसे सम्बन्धित धारणाओं का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  88. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
  91. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ बताइए।
  92. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रारूप बताइए।
  93. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
  95. प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
  96. प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  97. प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
  98. प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
  100. प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
  101. प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
  102. प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
  103. प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
  105. प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
  106. प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
  107. प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
  108. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा इनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
  109. प्रश्न- 'अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए।
  110. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- मौलिक कर्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
  112. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  114. प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
  116. प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- राज्य के उन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
  118. प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की भूमिका को विस्तार से बताइए।
  121. प्रश्न- सतत् विकास के लिए शिक्षा से आप क्या समझते हैं? सतत् विकास में शिक्षा की अवधारणा और उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- सहस्राब्दी विकास लक्ष्य मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का निर्धारण कौन-सा संस्थान करता है?
  123. प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
  124. प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
  125. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  126. प्रश्न- सतत् शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- सतत् शिक्षा के प्रमुख अभिकरण की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) व सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) क्या है? बताइए।

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